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स्वयं

रोहित सिंह काव्य
रोहित सिंह काव्य
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आज अपने ही विचारो से भटकने लगा हुँ,
जिन्दगी की थपेड़ो से उखड़ने लगा हुँ,
अपनी ही हर सोच को सही है या गलत खुद को ही परखने लगा हूँ ,
खुद पर से ही मेरा विस्वास डगमगाने लगा है ,
क्या करो मैं जबसे मेरी हर कोशिसो का परिणाम मेरे ही विपरीत आने लगा हैं ||
===रोहित सिंह ===

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