रोहित सिंह काव्य
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हाय रे हिंदी तेरी क्या दसा हो गयी ,
अपने ही देश में तू परायी हो गयी ,
मुँह के लिए कड़वी,कानो के लिए बुराई हो गयी ,
होती नहीं किसीकी भलाई तुजसे,लोगो के लिए रुस्वाई हो गयी ,
माना की तो भारत की शान हैं,
फिर भी खो सी गयी है तू अपने ही देश में क्या अब तेरी कोई नहीं पहचान हैं ,अंग्रेज़ी तो अपनी भाषा भी नहीं फिर भी जो बोले उसको अपने ऊपर अभिमान है ,ऐ हिन्दी धीरे- धीरे तू खो रही अपनी ही पहचान है ||
===रोहित सिंह===
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