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मेहनत

रोहित सिंह काव्य
रोहित सिंह काव्य
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जब मेरे पापा पैसे कमाते थे,
ऐसा लगता था जैसे पैसे पेड़ पर से आते थे,
आज जब मै खुद पैसे कमाने लगा हुँ,
उनके बहते हर पसीने की क़ीमत समझने लगा हुँ ||

===रोहित सिंह ===

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