रोहित सिंह काव्य
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जिन्दगी का एक और फलसफा सिख लिया,बच्चो के साथ खेलकर इस जवानी मे भी बचपना सिख लिया,जो कभी मेरे पाँव चलते थे जल्दी-जल्दी आज किसी बुर्जग का हाथ पकडकर उनके साथ कदम से कदम चलकर बुढापा भी जीना सिख लिया|
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