रोहित सिंह काव्य
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माना बहुत कुछ खोकर कुछ मैंने हैं पाया,
लेकिन बाद में एहसास हुआ की बहुत कुछ पाकर भी बहुत कुछ है गवाया,
सोचा जो गवाया है उसे दोबारा पाने की कोशिस कर लूँ,
पर समय को मेरा साथ मंज़ूर नहीं जिससे की बिगड़ी हुई बातो को दुबारा संभाल लूँ ||
===रोहित सिंह ===
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