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क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है

रोहित सिंह काव्य
रोहित सिंह काव्य
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क्या करे साहब आजकल शाटर्कट का जमाना है,
जिसकी लगी अच्छी नौकरी फिर भी टेबल के नीचे सैलरी के साथ- साथ कुछ ऐक्सटा और भी खाना है,
क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है,
प्रतयोगी परिळाये देते-देते थक गये नही अब और पसीना बहाना है,
अब कुछ सवालो का जवाब देके कौन बनेगा करोडपती जाना है,
क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है,न किसी को अब डाक्टर बनना,
न किसी को बनना अब इन्जिनियर है,न किसी और खेल मे जाना है,
अब सबको बनना सिंगर,डान्सर और सिर्फ क्रिकेट मे ही जाना है,
और दुनिया मे छा जाना है,क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है,
पहले तो दोस्तो और रिश्तेदारो के घर हमेशा रहता आना-जाना,
मगर आजकल मैसेज से उनका हालचाल पुछने आ गया नया जमाना है,मिलने का किसी के पास समय नही यू चैटिंग से ही काम चलाना है,
क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है,अब सब कुछ खरिदना आनलाइन है,अब ना खरिदने को कुछ ना कही बाहर जाना है,क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है,किसी को पैदल चलने का शौक नही,बाइक,कार उपयोग करके जल्दी कही पहुँच जाना है,क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है,मेहनत से अब किसी को पढना नही,उसके लिए भी भगवान के सामने हाथ फैलाना है,हे भगवान इस बार तुम पास करा दो पास होने के बाद तुम्हे लड्डु चढाना है,क्या करे साहब शाटर्कट का जमाना है|

===रोहित सिंह===

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